भारत सरकार स्‍वास्‍थ्‍य और परिवार कल्‍याण मंत्रालय स्‍वास्‍थ्‍य और परिवार कल्‍याण विभाग
स्‍वास्‍थ्‍य और परिवार कल्‍याण मंत्रालय - भारत सरकार

इतिहास

वापस जाएं

भारत ने सुव्यवस्‍थित रूप से अपनी स्‍वास्‍थ्‍य स्‍थितियों में सुधार किया है। जीवन प्रत्‍याशा, जो वर्ष 1947 में 32 वर्ष थी, बढ़कर फिलहाल 66.8 वर्ष हो गई है। नवजात मृत्‍यु दर (आईएमआर) 50 प्रति हजार जीवित जन्‍मों तक कम हो गई है। तथापि, कुपोषण तथा नवजात एवं मातृ रोगों के स्‍तर अभी भी उच्‍च हैं। अपर्याप्‍त स्‍वास्‍थ्‍य परिचर्या सुविधाओं की वजह से लगभग एक मिलियन भारतीयों की प्रतिवर्ष मृत्‍यु हो जाती है तथा 700 मिलियन लोगों को विशेषज्ञ परिचर्या सुलभ नहीं है एवं 80% विशेषज्ञ शहरी क्षेत्रों में कार्यरत हैं। भारत प्रति 1000 जनसंख्‍या पर अस्‍पताल में पलंग की उपलब्‍धता के संदर्भ में अत्‍यधिक कमी से जूझ रहा है। प्रति 1000 जनसंख्‍या पर अस्‍पताल में 3.96 की विश्‍व औसत की तुलना में भारत में 1000 जनसंख्‍या पर केवल अस्‍पताल में केवल 0.7 से थोड़े अधिक पलंग उपलब्‍ध हैं। जन स्‍वास्‍थ्‍य सुविधा केंद्रों के विस्‍तार के लिए सरकारों द्वारा प्रदत्‍त बजटीय सहायता अपर्याप्‍त रही है। अधिकतर राज्‍यों में वेतन तथा पारिश्रमिक का व्‍यय ही कुल स्‍वास्‍थ्‍य बजट का 70 प्रतिशत बैठ जाता है जिससे सेवाओं के विस्‍तार के लिए मुश्‍किल से कोई संसाधन बचता है।

      इसके अतिरिक्‍त, ऐसा अनुमान है कि भारत में स्‍वास्‍थ्‍य परिचर्या पर सार्वजनिक वित्‍त पोषण केवल 22% ही है। शेष 78% निजी व्‍यय सामर्थ्‍य से अधिक होने वाला व्‍यय है। कुल सार्वजनिक क्षेत्र की सब्‍सिडी में 20 प्रतिशत समृद्ध जनसंख्‍या की हिस्‍सेदारी लगभग 31 प्रतिशत है, जो 20 प्रतिशत गरीब जनसंख्‍या की हिस्‍सेदारी का लगभग तीन गुणा है।

      1980 के दशक के मध्‍य में आर्थिक विश्‍लेषक आशीष बोस ने “बिमारू” नामक एक संक्षिप्‍त शब्‍द गढ़ते हुए तत्‍कालीन प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी को एक पेपर प्रस्‍तुत किया। बिमारू हिंदी शब्‍द “बीमार” का प्रतीक था। इसका प्रयोग बिहार, मध्‍य प्रदेश, राजस्‍थान और उत्‍तर प्रदेश के पिछड़े राज्‍यों में अर्थ- व्‍यवस्‍था की बदहाली का उल्‍लेख करने के लिए किया गया था। बाद में, ओडिशा को भी इस सूची में शामिल किया गया। बिमारू राज्‍यों में संभावित आयु अन्‍य राज्‍यों की तुलना में कम थी। वास्‍तव में, यह संपूर्ण भारत की औसत संभावित आयु से कम है, जिसका अभिप्राय यह है कि इन राज्‍यों के कारण संपूर्ण औसत आयु कम होती है।

      मौजूदा परिदृश्‍य यह सुझाते हैं कि जन स्‍वास्‍थ्‍य देखभाल सेवा द्वारा विस्‍तार – समानता – उत्‍कृष्‍टता सुनिश्‍चित की जानी चाहिए। पर्याप्‍त स्‍वास्‍थ्‍य देखभाल की उपलब्‍धता के लिए तृतीयक देखभाल सुविधाओं का विस्‍तार करना आवश्‍यक होगा। तृतीय देखभाल को जनसंख्‍या के विभिन्‍न भागों में समान रूप से वितरित किया जाना चाहिए। नई सुविधाओं की स्‍थापना द्वारा तीन स्‍तरों – क्षेत्रीय, विशेषज्ञताओं, मेडिकल डॉक्‍टर और नर्सों तथा अन्‍य स्‍वास्‍थ्‍य देखभाल व्‍यावसायिकों के अनुपात में असंतुलन को दूर करना होगा। कार्य समूह के सदस्‍य इस बात से एकमत थे कि अगली पंचवर्षीय योजना में विस्‍तार व्‍यवस्‍थित होना चाहिए जिसकी रूपरेखा भावी चिकित्‍सा शिक्षा और देखभाल में गुणवत्‍ता प्रदान करने पर आधारित होनी चाहिए।

      पीएमएसएसवाई को सर्वप्रथम मार्च, 2006 में शुरु किया गया था जिसका प्राथमिक उद्देश्‍य सामान्‍य तौर पर देश में सस्‍ती / विश्‍वसनीय तृतीयक स्‍तरीय स्‍वास्‍थ्‍य देखभाल में उपलब्‍ध राज्‍यों में व्‍याप्त असंतुलन को दूर करना तथा अल्‍प-सेवित राज्‍यों में गुणवत्‍ता चिकित्‍सा शिक्षा हेतु सेवाओं में वृद्धि करना था।

      पीएमएसएसवाई में देश के विभिन्‍न राज्‍यों में अनेक मौजूदा चिकित्‍सा संस्‍थानों के उन्‍नयन की भी परिकल्‍पना की गई है। प्रारंभ में, उन्‍नयन के अनुमानित परिव्‍यय को संशोधित करके प्रति संस्‍थान 150 करोड़ रुपए (100 करोड़ रुपए के प्रारंभिक अनुमान से) किया गया था, जिसमें केंद्र सरकार की हिस्‍सेदारी 125 करोड़ रुपए थी।